सफलता या असफलता हमारे प्रयासों पर निर्भर करती है। जो काम अच्छे प्रयासों से किया जाता है, उसमें सफलता स्वभाविक है।
परन्तु अगर प्रयास में कमी हो, तो फिर और प्रयास करने की आवश्यकता होती है। संस्कृत में कई ऐसे श्लोक हैं जो विद्यार्थियो को सफलता प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
अर्थ - केवल इच्छा करने से कार्य सिद्ध नहीं होते, वास्तव में, मेहनत के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता। जैसे कि सोये हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं जाता, उसे श्रम करना पड़ता है।
अर्थ - इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।
अर्थ - इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।
अर्थ - इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।