Sanskrit Shlokas: विद्यार्थियो को सफलता दिला सकते हैं संस्कृत के ये श्लोक

सफलता या असफलता हमारे प्रयासों पर निर्भर करती है। जो काम अच्छे प्रयासों से किया जाता है, उसमें सफलता स्वभाविक है। 

परन्तु अगर प्रयास में कमी हो, तो फिर और प्रयास करने की आवश्यकता होती है। संस्कृत में कई ऐसे श्लोक हैं जो विद्यार्थियो को सफलता प्राप्त करने में सहायक होते हैं। 

"उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।"

अर्थ - केवल इच्छा करने से कार्य सिद्ध नहीं होते, वास्तव में, मेहनत के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता। जैसे कि सोये हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं जाता, उसे श्रम करना पड़ता है।

"योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय। सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥"

अर्थ - इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।

"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥"

अर्थ - इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।

"न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि। व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।"

अर्थ - इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।

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